आज यानी चार अप्रैल को महावीर जयंती है। महावीर जयंती जैन समुदाय का विशेष पर्व होता है। इस जयंती को भगवान महावीर स्वामी के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म ईसा पूर्व 599 वर्ष माना जाता है। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं और बचपन में उनका नाम वर्द्धमान था।
महावीर के अनुयायियों के लिए मुक्ति का मार्ग त्याग और बलिदान, लेकिन इसमें जीवात्माओं की बलि शामिल नहीं
आपको बता दें कि जैन धर्म का कोई संस्थापक नहीं है। जैन धर्म 24 तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षा पर आधारित है। तीर्थंकर यानी वो आत्माएं जो मानवीय पीड़ा और हिंसा से भरे इस सांसारिक जीवन को पार कर आध्यात्मिक मुक्ति के क्षेत्र में पहुंच गई हैं। सभी जैनियों के लिए 24वें तीर्थंकर महावीर जैन का ख़ास महत्व है। महावीर इन आध्यात्मिक तपस्वियों में से अंतिम तीर्थंकर थे। लेकिन, जहां औरों की ऐतिहासिकता अनिश्चित है वहीं, महावीर जैन के बारे में पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने इस धरती पर जन्म लिया। अहिंसा के इस उपदेशक का जन्म क्षत्रिय जाति में हुआ। वो गौतम बुद्ध के समकालीन थे। दिलचस्प बात ये है कि महावीर भी उसी मगध क्षेत्र यानी आज के बिहार के थे जहां के गौतम बुद्ध थे। गौतम बुद्ध और महावीर दोनों ही ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित उस युग के वैदिक विश्वासों के आधिपत्य के ख़िलाफ़ उठे आंदोलनों के सबसे करिश्माई प्रवक्ता थे। महावीर के अनुयायियों ने पुनर्जन्म के सिद्धांत जैसे कुछ वैदिक विश्वासों को तो अपनाया लेकिन गौतम बुद्ध की तरह जाति बंधनों, देवताओं की सर्वोच्चता में विश्वास और पशु बलि की प्रथाओं से किनारा कर लिया। महावीर के अनुयायियों के लिए मुक्ति का मार्ग त्याग और बलिदान ही है लेकिन इसमें जीवात्माओं की बलि शामिल नहीं है।
महावीर स्वामी क्या उपदेश थे?
कुछ बौद्ध ग्रंथों में महावीर का उल्लेख है लेकिन आज हम उनके बारे में जो कुछ भी जानते हैं उसका आधार दो जैन ग्रंथ हैं। प्रचारात्मक कल्पसूत्र- ये ग्रंथ महावीर के सदियों बाद लिखा गया। इससे पहले लिखे गए आचारांग सूत्र हैं। इस ग्रंथ में महावीर को भ्रमरणरत, नग्न, एकाकी साधु के रूप में दिखाया गया है।कहा जाता है कि महावीर ने 30 साल उम्र में भ्रमण करना शुरू किया और वो 42 साल की उम्र तक भ्रमण करते रहे। महावीर ने अपने अनुयायियों को असत्य और मैथुन त्यागने, लालच और सांसरिक वस्तुओं का मोह छोड़ने, हर प्रकार की हत्याएं और हिंसा बंद करने का संदेश दिया।
महावीर कैसे बने सन्यांसी
ज्ञान की खोज में गृह त्याग कर महावीर ने अपनी यात्रा की शुरुआत भी एक भयानक पीड़ाजनक कृत्य से की थी। कल्पसूत्र में अशोक वृक्ष के नीचे घटित उस क्षण का वर्णन है। वहां उन्होंने अपने अलंकार, मालाएं और सुंदर वस्तुओं को त्याग दिया। आकाश में चंद्रमा और ग्रह नक्षत्रों के शुभ संयोजन की बेला में उन्होंने ढाई दिन के निर्जल उपवास के बाद दिव्य वस्त्र धारण किए। वो उस समय बिल्कुल अकेले थे। अपने केश लुंचित कर (तोड़कर) और अपना घरबार छोड़कर वो संन्यासी हो गए। बौद्ध जहां अपना सिर मुंडवाते हैं वहीं, जैन शिष्य खुद अपने मुट्ठियों से बाल का लुंचन करते हैं।
जैन ग्रंथ के अनुसार, महावीर स्त्रियों को दुनिया का सबसे बड़ा प्रलोभन मानते हैं
जैन समुदाय में इस बात पर मतभेद है कि महिलाएं ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर चल सकती हैं या नहीं। एक जैन ग्रंथ के अनुसार, महावीर स्त्रियों को दुनिया का सबसे बड़ा प्रलोभन मानते हैं और कठोरतम जैन परम्पराओं के अनुसार, स्त्रियां संन्यासी नहीं हो सकती हैं, क्योंकि उनके शरीर में अंडाणुओं का निर्माण होता है, जोकि मासिक धर्म के स्राव के दौरान मारे जाते हैं।