अल्मोड़ा जिले मे ताकुला विकासखंड के विजयपुर पाटिया क्षेत्र में सैकड़ो वर्षो से गोवर्धन पूजा के दिन पाषाण युद्ध खेला जाता है। जिले मे चंपावत के देवीधुरा की तर्ज पर ऐतिहासिक पाषाण युद्ध यानि बग्वाल खेलने की पंरपरा चली आ रही है। पाषाण युद्ध की प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है। इस पाषाण युद्ध में दो गुट पचघटिया नदी के दोनों किनारों पर खड़े होकर एक दूसरे के ऊपर जमकर पत्थर बरसाते हैं। इस पाषाण युद्ध में जो भी दल का सदस्य पहले नदी में उतरकर पानी पी लेता है, वह दल विजयी हो जाता है। इस बार भी बग्वाल खेलने की प्रथा पूरे रस्मो रिवाज के साथ मनायी गयी। बीते कल मंगलवार को आयोजित बग्वाल में चार गांव के योद्धाओं ने हिस्सा लिया। और सदियों पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए पत्थर युद्ध खेला गया। बग्वाल कुछ अन्तराल तक चली यह युद्ध किसी एक ग्राामीण द्वारा नदी में पानी तक पहुंचने के बाद शांत हो गया। कोत्युड़ा की तरफ से विकी बिष्ट के पचघटिया में पानी पीत ही बग्वाल का समापन हो गया। इसके बाद पाटिया के राजा पिलखवाल ने पचघटिया में पानी पीया। और दोनो पक्षों द्वारा एक दूसरे पर पानी छिड़कने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया। बग्वाल मे पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले गये इस बग्वाल में पाटिया, भटगांव , जाखसौड़ा कोटयूड़ा और कसून के ग्रामवासियो ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इस युद्ध को देखने के लिए दर्जनो गांवो से सैकड़ो लोग देखने के लिए पहुंचे।
यह गांव बनते है युद्ध का हिस्सा –
पाटिया और कोट्यूड़ा के बीच मूलतः खेले जाने वाले इस पत्थर युद्ध में एक तरफ कोटयूड़ा और कसून के ग्रामीण होते हैं, तो दूसरी तरफ पाटिया और जाखसौड़ा और भटगांव के ग्रामीण होते है। पाषाण युद्ध का आगाज अगेरा मैदान के गाय खेत में ढोल-नगाड़ों के बीच गाय की पूजा के साथ किया गया। इसके बाद युद्ध का शंखनाद होता है और दोनों ओर से पत्थरों की बौछार शुरू हो जाती है। मान्यता के अनुसार पिलख्वाल खाम के लोगो ने चीड़ की टहनी खेत मे गाड़कर बग्वाल की अनुमति मांगी । इसके बाद मैदान को पार करके पचघटिया (नदी का नाम ) तक पहुंच कर पाटिया खाम के महेन्द्र पिलख्वाल के पानी पीने की रस्म के बाद यह युद्ध समाप्त हो गया इसके बाद लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी और अगली बार मिलने का वादा कर विदा ली। प्राचीन समय में केवल ठाकुर (क्षत्रिय) लोगों द्वारा इस बग्वाल को खेला जाता था लेकिन अब समय बीतने के साथ ही हर जाति का व्यक्ति और युवा इस पत्थर युद्ध में पूरे जोशो खरोश् के साथ शिरकत करता है।
यह पत्थर युद्ध कबसे और क्यों खेला जाता हैं –
यह पत्थर युद्ध किस लिए खेला जाता हैं इस बारे में नयी और कुछ पुरानी पीढ़ी को भी बहुत अधिक पता नहीं है लेकिन पुरखों की इस परम्परा को जिन्दा रखने के के लिए आज भी लोग इसे अपना पूरा समय देते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के युवाओं में पिछले कई दिन से इस युद्ध के आयोजन के लिए तैयारी षुरू हो जाती है। मान्यता है कि वर्षो पूर्व किसी आतताई को भगाने के लिए देानो गावों के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरों से भगाया था। और बाद में उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था। इस युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है। पूर्वजों के दौर से चली आ रही यह परिपाटी जारी है। लेकिन युद्ध का आगाज कब से और किस कारण हुआ इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहा पर यह भी बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परम्परा को उभारने और चम्पावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के लिये प्रशासन द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धि नहीं पा सकी है।
यह लोग रहे मौजूद –
अल्मोड़ा के पाटिया में 40 मिनट तक बग्वाल चली इस बग्वाल मे कई कई योद्धा चोटिल हुए। कोट्यूडा की ओर से विकी बिष्ट,पाटिया खाम की ओर से राजा पिलख्वाल ने अगुवाई की। इस मौके पर पाटिया के ग्राम प्रधान हेमंत कुमार, कोट्यदा के ग्राम प्रधान भुवन चंद्र आर्य, कसून के ग्राम प्रधान सुंदर मटियानी, भट्टगांव के ग्राम प्रधान सुनीता भट्ट, बंशीलाल, सरपंच देवेंद्र सिंह बिष्ट, सामाजिक कार्यकर्ता हेम चन्द्र पांडे, पूरन चंद्र पांडे, पनी राम,दयाल राम आदि मौजूद रहे।