नैनीताल जिले के हल्द्वानी क्षेत्र में 08 फरवरी बृहस्पतिवार को अचानक हिंसा भड़कने से शहर की शांति ही भंग हो गई। यह सवाल सरकारी सिस्टम और बनभूलपुरा के स्थानीय उपद्रवियों से भी है। की आखिर किस वजह से शहर ने सड़क पर आज पत्थर, खून और बदहवासी देखी गई। हल्द्वानी शहर में अस्सी के दशक के बाद शायद ऐसा पहली बार ऐसी घटना देखने के लिए मिली।
सड़को पर खुले आम कई घंटे तक हर तरफ पत्थरों की बारिश का तांडव चला रहा। आग की लपटों और गोलियों की आवाज से पूरे शहर की जनता दहशत में थी। इस पूरी घटना में पत्थरबाजी और गोली लगने से छह लोगों की मौत हो गई जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हैं। पुलिस से लेकर पत्रकार और आमजन तक सब जख्मी है।
शहर के लिए इस हिंसा ने एक ऐसा जख्म और दाग दिया है जिसे भरने में कई साल लग जाएंगे। यह सब के लिए जानना जरूरी है कि यह घटना सांप्रदायिक तनाव का बिल्कुल ही नहीं था। विशुद्ध तौर पर कानून व्यवस्था का मामला है जिसका आकलन करने में पुलिस और प्रशासन पूरी तरह फैल रहा।
प्रशासनिक अधिकारियों ने ठीक तरीके से नहीं किया आकलन-
बनभूलपुरा में अवैध धार्मिक स्थल तोड़ने का मसला सीधे तौर पर प्रशासन से जुड़ा हुआ था। इसे तोड़ने पर स्थानीय स्तर पर किस तरह का रिएक्शन हो सकता है। इसका आकलन प्रशासनिक अधिकारियों ने ठीक तरीके से नहीं किया। जिसका नतीजा यह रहा कि शहर ने सड़कों पर तांडव दिखा। हर तरफ खौफ का माहौल देखा। चिल्लाने और बचाने की आवाज में सुनी गईं।
पुलिस की खुफिया एजेंसी सटीक जानकारी देने में या तो फैल रही या जानकारी थी तो बिना तैयारी के कार्रवाई के लिए टीम को मौके पर भेज दिया गया। इसको लेकर भी पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहे हैं।जिले की ब्यूरोक्रेसी की अनुभवहीनता साफ तौर पर नजर आई। देहरादून को समय पर सूचना तक नहीं दी गई कि हल्द्वानी में हालात बेकाबू हो गए हैं। हमें क्या करना चाहि।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को जैसे ही किसी अन्य स्रोत से जानकारी मिली तो उन्होंने बीच में ही अपनी मीटिंग छोड़कर मुख्य सचिव और डीजीपी की आपातकाल बैठक बुलाकर पूरे मामले पर पैनी नजर बना दी।