अल्मोड़ा: सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा भूगोल विभाग के विद्यार्थी शैक्षणिक भ्रमण पर हैं। शैक्षणिक भ्रमण के अगले दिन छात्र-छात्राओं ने रानीखेत में स्थित हैडाखान मंदिर का भ्रमण किया। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता और शान्तमय वातावरण में सभी को काफी अच्छा लगा। सामने फैली महान हिमालय की बर्फीली चोटियों को एक चाप के आकार में यहाँ से देखा जा सकता है। इनकी पहचान के लिए यहाँ ठीक इनकी सीध में इनका चित्र लगाया गया है जो कि ज्ञानवर्द्धक है। रानीखेत में स्थित रानी झील एक कृत्रिम झील है जो पर्यटकों के अकर्षण का केंद्र है। यद्यपि झील में नौका विहार आजकल बंद है लेकिन आस-पास फैले चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों का घना जंगल, आर्मी कैंट का साफ़ -सुथरे वातावरण में घूमने का आनंद ही और है।
द्वाराहाट में हैं कत्युर काल के बने भव्य मंदिर
अब बारी थी द्वाराहाट की ओर प्रस्थान करने की। रानीखेत जो कि 1860 मीटर की ऊँचाई पर है, द्वारहाट के मार्ग में गगास नदी जो औसत 1300 मीटर की ऊँचाई में प्रवाहित होती है, में जलवायुगत अंतरों से उत्पन्न विभिन्नताओं को स्पष्ट समझा जा सकता है। यहाँ के तापमान रानीखेत से ज्यादा हैं। वनस्पति का अन्तर एक महत्वपूर्ण संकेतक है जलवायु बदलने का। द्वाराहाट नगर जो कि एक ऐतिहासिक नगर रहा है जहाँ कत्युर काल के बने भव्य मंदिर हैं। इन मंदिरों में महा मृत्यंजय मंदिर, गुर्जरदेव मंदिर आदि प्रसिद्द हैं। द्वाराहाट के ठीक ऊपर द्रोणगिरी चोटी हैं जहाँ दूनागिरी मन्दिर है। पुनः बांज, उतीस और बुरांश के जंगलों से होकर वहां पहुँचते हैं। अल्मोड़ा जिले की सबसे ऊंची छोटी भटकोट इसी क्षेत्र में स्थित है। इसके नीचे गगास नदी बहती है जो कि बिन्ता-बग्वालीपोखर को एक समृद्ध कृषि-घाटी में परिणित कर देती है। भूआकृति विज्ञान विषय विशेषज्ञ डॉ ज्योति जोशी जी ने यही बातें छात्र-छात्राओं को समझाते हुए कहा कि भूगोल के विद्यार्थी का इन घटकों को, चाहे वे भौतिक हों या सांस्कृतिक, समझने का अपना एक भिन्न पर्सपेक्टिव होता है जो कि हमारे द्वारा किये जाने वाले छोटे-छोटे अवलोकनों से विकसित होता है। यही अवलोकन विश्लेष्ण में सहायक होते हैं। डॉ दीपक, डॉ अरविन्द यादव और डॉ पूरन जोशी ने भी विद्यार्थियों का समय-समय पर मार्गदर्शन करते हुए भ्रमण को अर्थपूर्ण बनाया।