सोबन सिंह जीना परिसर के इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग में महान हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस अवसर पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता कला संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. ए. एस. अधिकारी ने की। उन्होंने प्रेमचंद के जीवन, साहित्यिक यात्रा और उनके सामाजिक सरोकारों पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रो. अधिकारी ने बताया कि प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। केवल सात साल की छोटी सी उम्र में प्रेमचंद ने अपनी माँ को खो दिया। वर्ष की किशोरावस्था में पिता भी इस दुनिया से विदा हो गए। ये आघात उनके लेखन में झलकने लगा। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन वे अपनी ज्यादातर रचनाएं उर्दू में ‘नबावराय’ के नाम से लिखते थे। 1909 में प्रकाशित उनकी पहली कहानी-संग्रह सोज़े-वतन ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी। इसके बाद उन्होंने ‘प्रेमचंद’ नाम से लिखना शुरू किया। इससे अंग्रेज सरकार को भनक भी नहीं लग पायेगी। उन्हें यह नाम पसंद आया और रातों रात नवाब राय प्रेमचंद बन गये। जीवन के अंतिम दिनों में वह जलोदर रोग से बुरी तरह से ग्रस्त हो गये थे। दिनांक 8 अक्टूबर 1936 को उनका देहांत हो गया इस काल में देश में स्वतंत्रता की लहर दौड़ रही थी, जिसने युवा प्रेमचंद को गहराई से प्रभावित किया। विशेष रूप से महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन ने उनके विचारों को एक नई क्रांतिकारी दिशा दी। अपने लेखन के माध्यम से, प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों पर करारा प्रहार किया। जाति भेदभाव, लैंगिक असमानता, बाल विवाह, और दहेज प्रथा जैसी ज्वलंत समस्याओं को उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया। उनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ जमींदारों और साहूकारों द्वारा किसानों के शोषण का जीवंत चित्रण करता है। प्रेम चंद एक मनोवैज्ञानिक की भांति अपने सभी पात्रों की मनोस्थिति एवं भावनाओं को समझते थे । 31 जुलाई, उनकी जयंती, को भारत में राष्ट्रीय लेखक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
