पत्रकार व समाजसेवी एस एस कपकोटी ने अपने जारी बयान में कहां कि आज के समय में प्रदेश के अन्दर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत दिन प्रति दिन लगातार बिगड़ती जा रही है। हालात यह है कि अस्पतालों में कहीं डॉक्टर उपलब्ध नहीं है तो कहीं दवाइयां। वही, कहीं उपचार की सुविधा नहीं है तो कहीं मशीनों को चलाने के लिए ऑपरेटर नहीं है। अस्पतालों में सबसे बड़ी जो समस्या है वह समस्या है दवाइयां की सरकारी अस्पतालों में आने वाली दवाइयों में अधिकांश दवाइयां सामान्य उपचार के लिए मौजूद होती हैं
जबकि गंभीर बीमारी के लिए अस्पतालों में दवाइयां उपलब्ध नहीं है इसलिए डॉक्टर को मजबूर होकर यह दवाइयां बाहर के लिए लिखनी पड़ती है और बाहर दवाई बेचने वाले दुकानदार इन दवाइयां पर लिखी एमआरपी से एक रूपया भी काम नहीं करते । वहीं अगर सरकार द्वारा खोले गए जन औषधि केंद्रों की बात करें तो वहां भी गंभीर रोगों से संबंधित दवाइयां उपलब्ध नहीं होती है। आए दिन सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर को कहा जाता है कि बाहर की दवाइयां ना लिखें लेकिन जब अस्पताल में इलाज के लिए उपयुक्त दवाइयां आती ही नहीं है
तो डॉक्टर ऐसी स्थिति में क्या करेगा डॉक्टर को मजबूरन बाहर की दवाइयां लिखनी ही पड़ती है। क्योंकि जो दवाइयां अस्पताल में आ रही हैं उन दवाइयां से कई ऐसे रोगों का इलाज नहीं हो पता है या यूं कहें कि उन दवाइयां से मरीज ठीक नहीं होता। अब ऐसे में सरकार और शासन प्रशासन पर यह सवाल खड़ा होता है कि जो दवाइयां बाहर मेडिकल स्टोर में बिकती हैं ऐसी कारगर दवाइयां अस्पतालों में क्यों उपलब्ध नहीं कराई जा सकती हैं । इधर अस्पताल प्रशासन की माने तो उनका कहना है कि कई ऐसी ऐसे रोगों की इलाज के लिए दवाइयां सरकारी अस्पतालों में आती ही नहीं है
जिसके लिए बाहर से ही दवाइयां लेनी पड़ती है तो ऐसे में सरकार और स्वास्थ्य के नीति निर्धारकों पर यह सवाल उठता है कि जगह-जगह करोड रुपए की बिल्डिंग खड़ा करने के बजाय अस्पतालों में संपूर्ण रोगों की दवाइयां उपलब्ध कराई जाए जिससे कि एक गरीब आदमी को अस्पताल में आकर सारे रोगों के ईलाज की दवाइयां मिल सके और बाजारों में मेडिकल स्टोरों की मनमानी पर रोक लग सके। यहां यह भी बताना चाहेंगे कि हर अस्पताल के इर्द-गिर्द खुलने वाले मेडिकल स्टोर दिन पर दिन करोड़पति बनते जा रहे हैं
यह इसलिए की अस्पताल में आने वाले मरीज के रोगों की इलाज के लिए अधिकांश दवाइयां इन्हीं मेडिकल स्टोर से खरीदी जाती है। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिलने के कारण आम आदमी मजबूर होकर इन मेडिकल स्टोरों से दवाई खरीदता है। वहीं कुछ मेडिकल स्टोर गरीब व्यक्ति द्वारा हजारों रुपए की दवाई लेने के बाद अगर दो-चार रुपय काम हो जाए तो उसे भी छोड़ने को तैयार नहीं होते हैं और बदतमीजी पर उतर आते हैं। इसलिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस और ध्यान देना होगा कि अस्पतालों में सामान्य बीमारी से लेकर गंभीर रोगों तक की दवाइयां को हर हाल में उपलब्ध कराया जाए।