अल्मोड़ा । कोरोना काल में प्रवासियों के लिए संकट मोचक बनी मनरेगा अब पलायन का दंश झेल रहा है। बीते तीन साल से 61 हजार से अधिक श्रमिकों ने मनरेगा के तहत काम करना बंद कर दिया। माना जा रहा है कि ये लोगों ने कोरोना संक्रमण बाद फिर से पलायन कर गए है। कोनोरा काल के दौरान लॉकडाउन में जिले में विभिन्न राज्यों से 32 हजार से अधिक प्रवासी अपने-अपने गांव लौटे थे। गांव लौटे प्रवासियों को तब मनरेगा का सहारा मिला था। प्रवासियों के समक्ष काम की समस्या को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से विभिन्न पंचायतों में मनरेगा के तहत प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया था। उस समय मनरेगा में पंजीकृत श्रमिकों की संख्या 1.65 लाख पहुंच गई थी, लेकिन तीन साल में 61 हजार 602 लोग मनरेगा की योजनाओं में निष्क्रिय हो गए हैं। जबकि, वर्तमान में 1.03 लाख ही मनरेगा के तहत रोजगार कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कोरोना से हालात सामान्य होने के बाद करीब 80 फीसदी लोगों ने नौकरी की तलाश के लिए महानगरों की ओर रुख किया। इसका असर मनरेगा की पंजीकरण सूची में साफ दिखाई दे रहा है।कम मजदूरी भी एक वजहमनरेगा से कार्य कर रहे ग्रामीण केशव दत्त, विनोद कुमार का कहना है मनरेगा से उन्हें खास लाभ नहीं है। एक तो उन्हें पूरे साल काम नहीं मिलता। ऊपर से मजदूरी भी काफी कम है। इससे परिवार की गुजर बसर करना आसान नहीं है। यहां रहकर मनरेगा के तहत काम करने से तो बाहर निकलना बेहतर है। इससे युवा काफी हद तक रुपये की बचत कर सकता है।कोरोना के बाद नहीं मिला कामग्रामीण मनोज सिंह, कैलाश पांडे का कहना है कि लोगों को उम्मीद थी कि कोरोना के बाद प्रवासियों को यहीं रोकने के लिए बेहतर प्रयास नहीं किए गए। मनरेगा से उतना काम नहीं मिला। ऊपर से सरकार की योजनाएं ऐसी नहीं रही, जिससे लोगों को यहीं रोका जा सके आर्थिक हालातों से मजबूर लोगों को वापस महानगर का रुख करना पड़ा।